गुरुवार, 29 सितंबर 2016

735



1-अनिता मण्डा

1- प्यारा -सा बचपन
मेरे घर के सामने विद्यालय की बसें रुकती हैंसवेरे-सवेरे कई बच्चे अपनी मम्मी या पापा के साथ बस का इंतजार करते हैं आज सुबह अच्छी हवा चल रही थी ; इसलिए कुछ देर सुस्ताने के लिए बालकनी में खड़ी होकर उन बच्चों को देख रही थी। चार-पाँच वर्षीया एक बच्ची अपनी मम्मी व  आठ-नौ वर्षीय अपने भाई के साथ आईउन्होंने बस की प्रतीक्षा में अपने बैग एक कार पर रख दिएबीच में उनकी मम्मी कार का सहारा लेकर खड़ी थी ,दोनों तरफ दोनों बच्चे।
भाई ने धीरे से मम्मी की पीठ पीछे से बहना की हल्की सी चोटी खींच दी। उस पर बहना ने गुस्से से मम्मी से भाई की शिकायत की, मम्मी ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए भाई को हल्की -सी चपत लगाई तो बहना खिलखिलाकर हँसने लगीभाई भी हँसने लगादोनों को हँसता देख मम्मी भी मंद- मंद मुस्कुरा उठी, उनकी प्यारी शरारतें देखकर मन में आया-

खुशियाँ बाँटे
प्यारा -सा बचपन
फिर न लौटे।

-0-

2. पौधे हरे- भरे
मन अशान्त था , पता नहीं क्यों ।बालकनी में गई तो वहाँ रखे हुए गमलों में मनीप्लांट के पौधे मुरझा हुए -से लग रहे थे। हरे पत्तों से ज्यादा पीले पत्ते नजर आ रहे थे। रोज पौधों में पानी डालने पर भी उनकी रंगत पर फर्क नहीं पड़ा। आज कुछ समय निकालकर मनीप्लांट में से सूखी पत्तियाँ निकाल दी, तो पौधे हरे- भरे और सुंदर दिखने लग गए- तभी एक विचार आया मन में कि यदि ऐसे ही हम अपने मन से कटु स्मृतियों के मुरझा पत्तों का कचरा निकाल दें ,तो अपना मन भी हर-भरा, ऊर्जा भरा हो जाए और खिलखिलाने लगेगा नकारात्मक ऊर्जा हमारी सोच में व्यवधान नहीं डालेगी। मन की उदासी हवा हो चुकी थी-

कड़वी यादें
निकाल दो मन से
मिलेगा सुख।


-0-
2-प्रेरणा शर्मा
1
प्रकृति प्यारी
दिल को लुभा रही
निहारूँ स्तब्ध
सागर नीर -भरा
मन में कैसे भरूँ?
2
बेड़ा उतारूँ
अथाह सागर में
सदा के लिए
या बैठ तट पर
एकटक निहारूँ !
3
वाह !जी वाह !
जल-थल-नभ का
अद्भुत चित्र!
किसने रचा-रंगा
तूलिका-रंग बिना।
4
ख़ूब सराहूँ
नयनों में बसाऊँ
बनूँ मैं बूँद
सिंधु में मिल जाऊँ
लहरों में खो जाऊँ
5
जादुई रंग
प्रकृति रंग- भरी
चितेरा कौन
हर पल सँवारे
नए-नए नज़ारे !
-0-
प्रेरणा शर्मा
228 प्रताप नगर,अयोध्या मार्ग, वैशाली नगर ,जयपुर 302021
-0-
3-डॉ.पूर्णिमा राय
1
छाया है अँधियारा
चंदा आओ तुम
हो जाए उजियारा!!
2
तुम बिन सावन बीते
आना बारिश बन
हम हारे तुम जीते !!
3
गुलशन में फूल खिले
सुरभित मन्द हवा
चाहत में हृदय मिले!!
4
मन की बातें कहते
मात-पिता सबके
हर पल ही सँग रहते!!
5
बातें करते धन की
बढ़ती है निस दिन
दूरी मन से मन की!!
6
बागों में फूल खिले
खुशियाँ मिल जातीं
सन्तों का संग मिले!!
7
झरने की ये कलकल
मीठे सपनों की
याद दिलाए पल पल!!
8
तुम भूल ग बातें
कसमें याद नहीं
बीते कैसे रातें!!
-0-

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

734

दोस्ती की गाँठ  

कमला घटाऔर 
हमारा आँगन काफी बड़ा था । शाम के समय मैं और मेरी सहेलियाँ इकट्ठी होकर वहाँ अपने मन पसन्द खेल खेलतीं । कभी दो लड़कियाँ रस्सी घुमाती हम बारी बारी से बीच जा कर बिना आउट हु बाहर आ जाती । कभी सटैपू खेलती , कभी किकली । बैठ कर गीटे खेलना हमें पसंद नही था । वह छोटी लड़कियाँ खेलती ।

 उस दिन हम स्टैपू खेल रही थी। मेरी सखी रमा से खेल में उसका स्टैपू लाइन से इस पार रह गया लाइन को छू रहा था । सब शोर मचाने लगी रमा आउट । एक लड़की बोली अब मेरी बारी । हटो । उसने रमा को बाहर निकाल दिया बना खानों से । वह भी गुस्से से पैर पटकती रूठकर घर चली गई । हमने खेल जारी रखा । उसने नहीं खेलना जाने दो । हमने सोच लिया ।
जाने कहाँ दे सकती थी वह ? वह तो अपनी मम्मी को ले आई हमारी शिकायत करके कि हम उसे अपने साथ खिला नहीं रही । टी बोली "क्या बात है वई ? रमा को क्यों नहीं साथ ले कर खेलती ?"
मैंने कहा, " टी हमारे साथ खेलते खेलते खुद ही खेल छोड़कर चली गई ।"
टी ने उस पर आँखें तिरेरी । पूछा ,"यह सच कह रही हैं ?"
उसने हाँ में सिर झुका लिया ।
टी बोली ,"चलो हाथ मिलाओ । करो सुलह ।"
वह अपने भायों की लाड़ली छोटी बहन कुछ ज्यादा ही जिद्दी थी
मैं हाथ आगे बढ़ाकर खड़ी रही । पर वह सुलह को तैयार नहीं थी ।
टी ने दुबारा कुछ नहीं कहा बस हम दोनों की चोटियाँ बाध दी । मेरी मम्मी भी वहीँ हमें देख रहीं थी । टी ने उनसे भी कहा ,"जब तक ये हाथ मिला कर पुन: दोस्ती नहीं करती इसी तरह रहेंगी ।आप भी इन्हें अलग नहीं करना ।"
फिर  टी हमसे बोली , "अरी बेवकूफो बचपन  हँसने खेलने के लि होता है या रूठकर अपना और दूसरों का मन दुखाने के लि ।"
हम जैसे ही अपने को एक दूसरे से दूर करती हमारे बाल खिंचते फिर पास आ जाती । इसी चक्कर में हमारी हँसी निकल गई ।हमने दोस्ती के लि अपना हाथ आगे कर दिया । जब तक हमारे बचपन ने साथ नहीं छोडा ।दुबारा यह नौबत नहीं आई । टी की दी सीख अभी भी याद है । दोस्ती तोड़ने से एक का नहीं दोनों का दिल दुखता है । जैसे बाल खिंचने से ।

खेल खेल में
बचपन दे गया
अमूल्य ज्ञान ।

733



1-शशि पाधा
1
कुछ भूला- भटका सा
इत-उत फिरता मन
अम्बर से लटका -सा ।
2
क्यों माया जाल बुना
बंद पिटारी से
क्यों जी जंजाल चुना ।
3
दो दिन का डेरा है
नगरी अनजानी
बस रैन बसेरा है
4
दुख कितना भोग लिया
जब से लगन लगी
सुख से संयोग किया।
5
दोराहे आन खड़े
रसता सूझे ना
शंका में पाँव जड़े ।
6
सब कुछ जब अर्पण हो
धुँधला मिट जाए
मन निर्मल दर्पण हो ।
-0-
2-मंजु गुप्ता

1
बनके उपकार नदी
है माँ की महिमा
गाती हर एक सदी .
-0-

शनिवार, 24 सितंबर 2016

732



ज्योत्स्ना प्रदीप
1
वो नाते प्यारे थे
करते मन शीतल
चाँदी -से धारे थे ।
2
वो बूढ़े बाबा थे
मंदिर सबके थे
वो ही तो काबा थे ।
3
पीपल की छैंया थी
घर थे सादे से
हर घर में गैया थी ।
4
वो सीखें माई की
हर लड़के मे थी
सूरत निज भाई की ।
5-
वो विधवा चाची थी
पीर -कथा उसने
जीवन भर बाँची थी ।
6
कोई न कहीं छल था
चा भरी एक मन
मीठा सबका पल था
7
जब ईद- दिवाली थी
लखना- जुम्मन की
तब एक ही थाली थी ।
8
अब उजले तो मुख हैं
होठों हास थमा
मन में केवल दुख हैं
9
अब खूब दिखावा है
मन घायल कर दे
हर ओर छलावा है ।
10
नेकी न कभी मरती
अब तक बाकी है
कुछ लोगों से धरती ।
-0-